सिरसा 9 अगस्त। मालिक का नाम जपना बहुत जरुरी है। यह आत्मा अल्लाह-वाहेगुरु, मालिक के साथ फिर से मिल सकती है अगर उसकी भक्ति-इबादत करें, और इस रुह-आत्मा को भक्ति करने के लिए ही मनुष्य का शरीर मिला है, बाकी शरीरों के अंदर कर्म भोगती है या कर्म कर सकती है, लेकिन सर्वोत्तम कर्म अल्लाह-मालिक की भक्ति-इबादत है। यह मनुष्य जन्म में ही संभव है उक्त वचन डेरा सच्चा सौदा के पूजनीय गुरू संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने डेरा सच्चा सौदा में आयोजीत सत्संग के दौरान फरमाए। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों के अंदर यह लिखा हुआ है इंसान को जब राम ने बनाया, तो सभी देवतों-फिरश्तों को उस राम-अल्लाह ने कहा, आओ इस बंदे के बुत्त को सजदा-नमस्कार करो, सभी देवी-देवताओं ने जब यह पूछा कि हे मालिक कि हम सब फिरश्ते हैं, और यह मृत्यूलोक में जाने वाला बुत्त है हम इसें क्यों सजदा करे, तो आगे से जवाब मिला इस शरीर-बुत्त के अंदर जो आत्मा रुह जाएगी अगर वो चाहेगी तो वह मृत्यूलोक में रहती हुई मेरी भक्ति-इबादत करके मेरी दया-मेहर रहमत पा सकती है जबकि यह और किसी भी जून अंदर यह संभव नहीं है। मुक्ति-मोक्ष का रास्ता सिर्फ इंसानीशरीर के अंदर ही संभव है, जब ये बात सुनी, तो एक काल-महाकाल को छोडक़र सभी देव-फिरश्तों ने सजदा-नमस्कार किया, सो इसलिए मनुष्य शरीर में सबसे पहला कार्य आवागमन-जन्म-मरण से मुक्ति पाना है। और इसके लिए सर्वोत्तम कर्म मालिक को याद करो, कलमा अता करो, वाहेगुरु को याद करो, रामनाम का जाप करो, सुमिरन करो, गॉड्स प्रेयर करो, भक्ति-इबादत करो। उन्होंने कहा कि इंसानी जिंदगी का मकसद केवल पैसा इकट्ठा करना नहीं है बल्कि इस धरती पर रहते हुए तमाम खुशियां हासिल करना और भगवान का नाम लेकर आवागमन के चक्कर से आजाद होना है। उन्होंने कहा कि ईश्वर का नाम सभी सुखों की खान है पूर्ण संत फकीर से गुरूमंत्र लेकर अगर इंसान नियमों पर रहते हुए इसका नियमित रूप से अभ्यास करे तो जीवन के तमाम सुख व शांति को प्राप्त करता हुआ मोक्ष के पद को पा जाता है। सत्संग में उपस्थित लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत जी ने फरमाया कि सभी धर्म आपस में प्रेम करने की ही शिक्षा देते हैं। धर्म का मतलब है धारण कर लो, धर्म इंसान को इंसान के साथ व इंसान को भगवान के साथ जोड़ता है। किसी भी धर्म में ईष्र्या नफरत के लिए कोई जगह नहीं है। लोग अपनी गर्ज व अहंकार के कारण धर्मो का दिखावा करके बुरे कार्य करते हैं ऐसे लोग घोर नर्कों के भागी बन जाते हैं। सत्संग के अंत में एक जोड़े की सादगी पूर्ण ढंग से दिलजोड़ माला पहनाकर शादी करवाई गई। हजारों की संख्या में सत्संग के उपरांत लोगों ने पूजनीय गुरू जी से गुरुमंत्र लिया और बाद में सभी साध-संगत को भोजन लंगर खिलाया गया।
Monday, August 10, 2009
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