Thursday, June 25, 2009

सवाइन फलु से दुनिया में 238 लोगों की मौत हुई

नई दिल्ली 25 जून, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अब तक 108 देशों से प्राप्त एएच1एन1 इन्पऊलूएंजा की 55867 प्रयोगशालाओं में पुष्ट संक्रमण मामलों की रिपोर्ट दी है। इन मामलों में 238 लोगों की मृत्यु हुई है।
संक्रमित देशों से यात्रियों की स्वास्थ्य संबंधी रिपोटें 22 अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर लगातार मिल रही हैं। 23 जून को दुनिया भर में 49,040 यात्रियों की जांच की गई जिनमें से 26,791 यात्री संक्रमित देशों से थे। हवाई अड्डों पर बनाए गए 77 काउंटरों पर 224 डॉक्टरों तथा 112 नरसों आदि की सेवायें उपलब्ध थी। कुल मिलाकर 23,31,717 यात्रियों की सेवाएं मुहैया कराई गई है। वहीं देश में बीते 24 घंटो में पांच नए मामलों की खबर मिली है। इनमें से 2 दिल्ली से, एक मदुरै से और एक हैदराबाद से और एक चंडीगढ से़ है। दिल्ली के 2 मामलों में से एक 40 साल का पुरूष है जो अमेरिका से जर्मनी होते हुए भारत आया था। दूसरा मामला उसकी 39 साल की पत्नी का है जो उसी के साथ यात्रा कर रही थी। दोनों को तीव्र ज्वर, गला खराब और बदन दर्द की शिकायत थी। समदुरै का मामला 8 साल के लड़के का है जो अमरीका से मुम्बई होते हुए 13 जून को मदुरै पहुंचा और उसे 18 जून 2009 को स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र में भरती कराया गया था। चंडीगढ का़ मामला 19 साल के पुरूष का है जो अमरीका से 20 जून को नई दिल्ली पहुंचा और सड़क के रास्ते गुरूदासपुर गया। उसे 22 जून को तीव्र ज्वर, गला खराब, नाक बहने की शिकायत थी। वह चंडीगढ में स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र में भरती हुआ है। हैदराबाद में 15 साल की लड़की जो हांगकांग से सिगापुर होती हुई 19 जूनको हैदराबाद पहुंची थी को 22 जून से गला खराब, नाक बहने और ज्वर की शिकायत थी। उसे इसी दिन स्वास्थ्य सुविधा केन्द्र में दाखिल कराया गया था। राजधानी दिल्ली में एक पीङत महिला की स्थिति स्थिर बनी हुई है। देश में अब तक की गई जांच के अनुसार 532 व्यक्तियों में से 73 इन्पऊलूएंजा ए एच1एन1 (स्वाइन) पॉजिटिव हैं। इनमें से 6 मामले स्वदेशी हैं जो विदेश से आए संक्रमित व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से संक्रमित हुए हैं। बाकी के सैम्पल नॉर्मल वाइरस के मामले में `निगेटिव` पाये गए हैं। 532 में से 157 की स्क्रीनग के जरिए पहचान की गई, 21 की सम्पर्क के जरिए तथा अन्य की खुद के जरिए पहचान की गई है। 73 मामलों में से 43 को छुट्टी दे दी गई है। बाकी व्यक्तियों को `हेल्थ फेसिलिटी` में रखा गया है। वहीं स्थिति की निगरानी जारी है।

Wednesday, June 24, 2009

Punjab becomes the first state to install RO system

Chandigarh, June 25
Punjab becomes the first state in the Northern India, to install the Reverse Osmosis (RO) Plants to provide fresh potable water in 327 villages of Bathinda, Mansa, Faridkot, Ferozepur, Sangrur, Patiala and Tran Taran at a cost of Rs.34.82 crore. These districts had a serious threat perception to the human lives due to high degree of salinity in the ground water especially for drinking purposes. The Spokesman of the Punjab Government today said that all the schemes based upon canal water, tube well, percolation well and India Mark-II hand pumps were also being rejuvenated for improving the efficiency of filtration and quality of treated water with de-silting and repair of storage tanks, inlet channels and washing of the filter media in the existing filter beds under NERGA wherein 70% work had been completed and rest was in full swing. Replenishment of the filter media would be completed after washing of the existing filter beds under NREGA. The Water Supply & Sanitation (WSS) department had also fabricated a mobile water testing laboratory to help the department in effective surveillance of drinking water quality in the rural areas of the state. To impart training to the personnel and elected members of Panchayati Raj Institution (PRIs) under the water quality surveillance programme of the Government of India. The WSS department had organized 922 workshops, each in a cluster of five villages with participation of five persons/ PRI members from each village. As a result 4779 villages had been covered under the training programme during the year 2008-09. Each village had also been provided with a water testing kit capable of testing 100 water samples for 8 to 12 parameters i.e. pH, Alkalinity, Hardness, Chloride, TDS, Fluoride, Iron, Ammonia, Nitrate, Nitrite, Phosphate and Residual Chlorine. In addition to field test kits nearly 1 lakh H2S kits had also been distributed to different villages for testing water of different sources for bacteriological contamination. The spokesman further added that the Punjab had also achieved another record by covering 1805 villages during the year 2008-09 under 1280 Water Supply Schemes (WSS) that included 576 new water works schemes in 916 villages, augmentation of 247 existing Water works in 432 villages and 457 schemes in the same numbers of villages by installing India Mark-II Hand Pumps. The State government has been awarded ‘Nirmal Gram Purashkar’ to 22 villages from Punjab during 2008-09 under Total Sanitation Programme (TSC). The Award carries cash prize varying from Rs. 50,000 to 5 lac, depending on the population of the village. The State government with its concerted efforts succeeded in getting the reduction in the beneficiary share under World Bank’s assisted project for Punjab rural water supply and sanitation works. Now, upper ceiling of household share of capital cost had been reduced from Rs.1500/- to Rs.800/- for General category and for Rs.750/- to Rs.400/- per household in difficult area villages i.e. notified villages along with International Border, Kandi Area, Bet Area and Water logged area whereas, SC population to contribute only 50% of the prescribed amount for general category and difficult area villages. After this relaxation 424 villages had contributed beneficiary share out of which estimates of 181 villages had been approved, bids for 180 villages were invited and contracts for 62 villages had been awarded while rest of the work was in progress.Under the rejuvenation of Canal based schemes, 346 schemes were equipped with latest drinking water disinfection system i.e. Silver Ionization Plants at a cost of Rs. 6.74 crore along with the necessary repair and replacement of the machinery. As well as, the Punjab Government has chalked out a special up gradation of Water Supply and Sewerage Plan for Sri Anandpur Sahib, Talwandi Sabo and Muktsar at a cost about Rs.36.34 crore on the auspicious occasion of Gurta Gaddi Diwas celebrations of Sri Guru Granth Sahib ji. The scheme envisaged laying of water supply lines & sewerage system, construction of Over Head Service Reservoirs (OHSR), Sewerage Treatment Plants and Toilet Complexes etc. More than 50% to 70% of the works under various schemes had been completed and balance would also be completed with the schedule.

Tuesday, June 23, 2009

मसूरी में बजेगा रेडियो खुशी

नई दिल्ली - 23 जून, सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार ने गुरू नानक पांचवी शताब्दी विद्यालय, मसूरी, उत्तराखंड में एक सामुदायिक रेडियो केन्द्र की स्थापना, संरक्षण और संचालन के लिए अनुमति-समझौते के अनुदान पर हस्ताक्षर कर दिया है। समझौते के अनुसार, तीन महीने के अंदर इस सामुदायिक रेडियो केन्द्र से कार्य संचालन शुरू हो जाने की आशा है। इस केन्द्र से प्रसारण कार्य शुरू हो जाने पर देश में सामुदायिक रेडियो केन्द्रों की संख्या बढक़र 47 हो जाएगी।
गुरू नानक पांचवी शताब्दी विद्यालय का कार्य संचालन गुरू नानक पांचवी शताब्दी सोसायटी के अंतर्गत होगा और यह आईएससी तथा आईसीएसई से सम्बद्ध रहेगा। इसने विकास, सांस्कतिक, स्थानीय तथा राष्ट्रीय नागरिकों और यातायात से सम्बद्ध मुद्दों, आपदाओं और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर नागरिक समाज की सेवा के उद्देश्य से सामुदायिक रेडियो केन्द्र - रेडियो खुशी की शुरूआत करने के लिए अनोखा और सर्वापयोगी कार्यक्रम तैयार किया है। इसके रेडियो कार्यक्रमों को तैयार करने में डॉक्टरों स्वास्थ्य कर्मियों की भी सेवाएं ली जाएंगी।

उत्तरी भारत जल संकट की कगार पर

चंडीगढ 23 जून मानसून में हो रही देरी और समय सहते सही जल प्रंबधन नहीं किए जाने के कारण पंजाब राजस्थान व हरियाणा में जल संकट के हालात बनने लगे है। पंजाब में स्थित भाखडा, पोंग व रणजीत सागर बांध पर पानी का स्तर चिंताजनक हद तक नीचे गिर चुका है जबकि इन्द्र देव के बादल दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहे। ऐसे राजस्थान ने जहां खेती के लिए पानी बंद कर केवल पीने के लिए पानी देने का फैसला कर लिया है वहीं पंजाब में भी किसानों को कम पानी मिल रहा है और सिंचाई विभाग अब इसमें और कमी करने जा रहा है। जिस कारण पंजाब का 1५ लाख और राजस्थान का ५० लाख हैक्टेयर रकबा सूखे का शिकार हा जाएगा। अगर 7 दिन और बादल न बरसे तो हालत भयानक हो सकते है क्योंकि बांधों पर केवल कुछ फूट पानी ही बचा है।

भूस्खलन संबंधी शोध, अध्ययन एवं प्रबंधन केन्द्र स्थापित करने की सरकार की योजना


नई दिल्ली 23 जून,

सरकार भूस्खलन संबंधी समस्याओं के बारे में शोध, अध्ययन और प्रबंधन पर गंभीरता से विचार कर रही है। केन्द्रीय खान मंत्री श्री विजोय कष्ण हांडिक ने आज राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन मार्गनिर्देश भूस्खलन एवं हिम-स्खलन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के बारे में एक पुस्तक का लोकार्पण करते समय ये विचार व्यक्त किए। श्री हांडिक ने बताया कि भारत को बाढ, च़क्रवात, भूकम्प और भूस्खलन आदि जैसी दैवी आपदाओं का सामना करना पड़ता है। देश के 22 राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश को प्राय: हर वर्ष, विशेषकर वरषा त्रितु में इन समस्याओं से जूझना पड़ता है।
इस अवसर पर खान मंत्रालय सचिव, श्रीमती शान्ता शीला नैयर, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष, सेवानिवृत्त जनरल एन.सी. विज़, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य डॉ0 मोहन कांडा, वरिष्ठ उप-महानिदेशक एवं प्रभारी, भारतीय भूगिलक सर्वेक्षण, श्री एन.के. दत्ता समेत अनेक वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र


पूरवोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश के कामेंग जिले में पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र एक सुरक्षित क्षेत्र है । यहां दूर-दूर तक हरियाली फैली है और विभिन वन्य जीव रहते हैं । इस बाघ संरक्षित क्षेत्र का मुख्यालय सीजुसा है, जो असम के साइबारी से 21 किलोमीटर की दूरी पर है । यह बाघ संरक्षित क्षेत्र पश्चिम और उत्तर में कामेंग नदी, पूर्व में पके नदी तथा दक्षिण में असम की दुर्गम सीमा से घिरी है । इसमें काफी घने वन हैं । इसमें कई तरह के पर्यावास क्षेत्र, जैसे निचले अर्द्ध सदाबहार, सदाबहार और पूव हिमालय हैं । पूव हिमालय वाले इलाके में चौडे पत्ते वाले पेड़ पाये जाते हैं । इस बाघ संरक्षित क्षेत्र से असम का नामेरी बाघ संरक्षित क्षेत्र भी लगा हुआ है ।पहले, यह पके संरक्षित क्षेत्र के नाम से जाना जाता था । इसके सीमावरॉती क्षेत्र से कामेंग और पके नदियों के बहने के कारण ही इसे सन 1966 में यह नाम दिया गया था । सन 1977 मे इसका नाम बदलकर कोमो अभयारण्य कर दिया गया । बाद में 2002 में इसे पाखुई वन्य जीव संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया । अंतत: 18 फरवरी, 2002 को इसे भारत सरकार की प्रोजेक्ट टाइगर स्कीम के अंतर्गत ले आया गया और उसके महज पांच दिन बाद ही इसे पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र नाम दिया गया।

पाखुई बाघ संरक्षित क्षेत्र में बैठा बाघचैम्पियन एवं सेठ के वरगीकरण के अनुसार इस संरक्षित क्षेत्र को निम्नलिखित भागो में बांटा गया है -असम घाटी उष्णकटिबंधीय अर्द्ध सदाबहार वनउप हिमालयी अल्प कछार अर्द्ध सदाबहार वनपूव छोटी पहाड़ी वाले वनऊपरी असम घाटी उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनउष्णकटिबंधीय नदी क्षेत्र वनद्वितीयक नम बांस क्षेत्रइस संरक्षित क्षेत्र का निचला इलाका दलदली तथा वषाZ वाले वनों, बड़े पेड़ों जैसे हुलॉक, बोला तथा बड़े-बड़े बांसों, आकिर्ड, क्लाइम्बर्स (बेंत) आदि से ढका है । इस इलाके में बेंत की कैलामस क्रेक्टस, कैलामस टन्यूस तथा कैलामस पऊलैजेला प्रजातियां पाई जाती हैं ।यहां खासकर उपरी क्षेत्रों में बड़े-बड़े बांस मिलते हैं । अरूणाचल प्रदेश में बांस की 30 प्रजातियां पायी जाती हैं । डेंड्रोकैलामस हेमिटोकी, बंबूसा पेलिडा, स्यूडोस्टाकेम पोलीमारफिज्म बांस की महत्वपूर्ण प्रजातियां हैं । हजार से तीन हजार की ऊंचाई पर पर्णपाती एवं अर्द्ध-पणपाती वन हैं । यहां, अखरोट, बांज, चेस्टनट स्प्रूस और डोडेन्ड्रस जैसे पौधे पाये जाते हैं । 4000 मीटर की ऊंचाई पर छोटे रोडोडेन्ड्रस पाये जाते हैं तथा पांच हजार मीटर की ऊंचाई के आसपास अल्पाइन घास पायी जाती है ।आकिर्ड के वन प्रारंभिक, अछूते तथा छेडछाड़ से मुक्त है । एक बहुत बड़े वन यात्री श्रुति रवीन्द्रन लिखते हैं कि आकिर्ड में ऐसा कुछ है जो हमारे मस्तिष्क में भियोचित भाव पैदा करता है । यह हमें कस्तूरी के गंध का या गरमी में भनभनाती मधुमिक्खयों-सा भान कराता है । इसकी सुंदरता बहुविध होती है । यह हमें सनसनाती पित्तयों से घोसलें में पड़े कीड़े तक की याद दिलाता है । दुनियाभर में आकिर्ड की 35000 वन्य प्रजातियां हैं, जिनमें से 1450 प्रजातियां भारत में है । इन 1450 प्रजातियों में 900 दुरलभ एवं उत्तम प्रजातियां अरुणाचल प्रदेश, मे मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, सिकिम तथा पश्चिम बंगाल के दार्जिलग में पायी जाती हैं। खेती योग्य बहुविध जलवायवीय अवस्थाएं, उच्च आद्रता और वरषा एवं सीमावरती चीन और बर्मा की प्रजातियों का प्रसार इस इलाके को विविध प्रकार के आकिर्ड के लिए आदर्श पर्यावास बनाते हैं । आकिर्ड जमीन पर उगते हैं । आकिर्ड दो प्रकार के होते हैं । अधिपादप यानि चट्टानों एवं पेड़ों पर उगने वाले आकिर्ड तथा मृतजीवी यानि वन अपशिष्ट पर उगने वाले आकिर्ड । भारत के दुर्लभ आकिर्ड लोस्ट लेडिज स्लीपर तथा नीले वांडा (धारीदार) पेड़ों पर उगते हैं । आकिर्ड साहित्य के अनुसार ब्रिटिश इंडियन आमÊ के एक जवान ने सबसे पहले 19वÈ सदी के अंतिम वषो में लोस्ट लेडिज स्लीपर देखा था । लाल और नीले वांडा दूसरे दुर्लभ आकिर्ड हैं जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। डिप्लोमेरिस हिरसूट यानि बफीले आकिर्ड को पूव हिमालय में तीन दिनों की यात्रा के बाद देखा जा सकता है ।पेड़ों की प्रमुख प्रजातियों में बड़े पेड़ टर्मिनालिया मायरियोकापा (हॉलाक), ऐलांथस इजसेला (बारापेट), दुभानगगरांडिपऊलोरा (खोकान), केनेरियम रेसिनफेरम, ट्रेविया नूडिपऊलोरा, टेट्रोमिलूस नूडिमपऊलोरा, स्टेरकूलिया विल्लोसा, मैक्रोपैनेक्स डेपरमस, सिजिगियमएक्रोकारपम, गार्सिनिया, स्पेशीज, क्यूरकस लामा लियोसा आदि कई प्रकार के वृक्ष शामिल हैं ।इस संरक्षित क्षेत्र में बाघ, चीते, बादलों के रंगवाले चीते, जंगली बिल्लियां, जंगली कुत्ते, सियार, भारतीय लोमड़ियां, हमालयी काले भालू, हाथी, गौर, बिटूरोंग, सांभर, पाढा, बाकिग डीयर, स्लो लोरिस, पीले गले वाले अबाबील, मलयालन बड़ी गिलहरी, उड़ने वाली गिलहरी, गिलहरी, मुष्क बिलाव, लंगूर, रियसस मैकेक, असमी मैकेक आदि जानवर पाये जाते हैं । एक अनुसंधानकर्ता ने इस क्षेत्र में पूंछ पर छाप वाले मैकेक के पाये जाने की बात कही है ।इस संरक्षित क्षेत्र में रंग-बिरंगे पक्षी पाये जाते हैं । उनमें हार्नबिल, सफेद पंख वाले काले बतख, जंगली मुगियां, महोख, पंडुक, बसंता, गरूड, बाज आदि शामिल हैं । कुछ सरीसृप जैसे अजगर और करैत सांप भी यहां मिल जाते हैं ।